AhlulBayt News Agency

source : al Mustafa
Tuesday

27 January 2015

10:20:14 AM
667464

Full Text;

Message of Ayatollah Khamenei to the Youth in Europe and North America in HINDI (हिंदी)

Message of Ayatollah Khamenei to the Youth in Europe and North America in HINDI

यूरोप और उत्तरी अमरीका के युवाओं के नाम वरिष्ठ नेता का संदेश
 

بسم‌ الله الرّحمن الرّحیم

यूरोप और उत्तरी अमरीका के युवाओं के नाम,

फ़्रास की हालिया घटनाओं और कुछ अन्य पश्चिमी देशों में होने वाली घटनाओं ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुंचाया कि आप से प्रत्यक्ष रूप से बात करनी चाहिए। मैं आप युवाओं को संबोधित कर रहा हूं, इस लिए नहीं कि आपके माता-पिता की उपेक्षा कर रहा हूं, बल्कि इस वजह से कि आपकी धरती और राष्ट्र का भविष्य मैं आपके हाथों में देख रहा हूं, तथा आपके हृदयों में सच्चाई को समझने की जिज्ञासा अधिक प्रगतिशील और जागरूक पाता हूं। इस संदेश में मैं आपको राजनेताओं और अधिकारियों को संबोधित नहीं कर रहा हूं क्योंकि मैं यह समझता हूं कि उन्होंने राजनीति के मार्ग को जानबूझ कर सत्य और सच्चाई से अलग कर दिया है।

आपसे मुझे इस्लाम के बारे में बात करनी है और विशेष रूप से इस्लाम की उस तसवीर और छवि के बारे में जो आपके सामने पेश की जाती है।

पिछले दो दशकों से इधर अर्थात सोवियत संघ के विघटन के बाद से, बहुत व्यापक रूप से प्रयास किए गए कि इस महान धर्म को डरावने शत्रु के रूप में पेश किया जाए। भय और घृणा के भाव उभारना और फिर उसका दुरुपयोग करना, दुर्भाग्यवश पश्चिम के राजनैतिक इतिहास में बहुत पहले से चला आ रहा है।

यहां विभिन्न प्रकार के डर और भय के बारे में बात नहीं करनी है जो पश्चिमी राष्ट्रों के भीतर फैलाया जाता रहा है। आप स्वयं ही समकालीन इतिहास का आलोचनात्मक दृष्टि से संक्षिप्त अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे कि हालिया इतिहास में विश्व के अन्य राष्ट्रों और संस्कृतियों के साथ पश्चिमी सरकारों के धोखेपूर्ण और निष्ठा से परे बर्ताव की अलोचना की गई है।

यूरोप और अमरीका का इतिहास दासप्रथा से शर्मिंदा है, शोषण के कारण लज्जित है, अश्वेत नस्लों और ग़ैर ईसाइयों पर किए गए अत्याचारों पर शर्मसार है। आपके इतिहासकार और अध्ययनकर्ता धर्म के नाम पर कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के बीच या पहले और दूसरे विश्व युद्ध में राष्ट्रवाद और जातियों के नाम पर किए जाने वाले रक्तपात पर शर्मिंदगी ज़ाहिर करते हैं।

यह चीज़ अपने आप में सराहनीय है। इस लंबी सूचि का एक भाग प्रकाश में लाने से मेरा उद्देश्य इतिहास की आलोचना करना नहीं है, बल्कि आपसे चाहता हूं कि अपने बुद्धिजीवियों से पूछिए कि आख़िर पश्चिम में सार्वजनिक अंतरात्मा कई दशकों और कभी कभी कई शताब्दियों के विलंब से क्यों जागे और होश में आए? सार्वजनिक अंतरात्मा में पुनर्समीक्षा का विचार समकालीन मामलों के बजाए क्यों सुदूर भूतकाल के कालखंडों पर क्यों केन्द्रित रहे?

क्यों इस्लामी विचारों और संस्कृति के बारे में बर्ताव जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विषय में क्यों सार्वजनिक चेतना और बोध का रास्ता रोका जाता है?

आप भलीभांति जानते हैं कि दूसरों के बारे में काल्पनिक भय और नफ़रत फैलाना तथा उनका अपमान समस्त अन्यायपूर्ण दुरूपयोग और शोषण की भूमिका रहा है। मैं चाहता हूं कि आप ख़ुद से यह सवाल करें कि भय उत्पन्न करने और नफ़रत फैलाने की पुरानी नीति ने इस बार असाधारण तीव्रता के साथ इस्लाम और मुसलमानों को क्यों निशाना बनाया है?

आज की दुनिया की शक्ति व्यवस्था क्यों चाहती है कि इस्लामी सोच हाशिए पर और बचाव की स्थिति में रहे? इस्लाम के कौन से मूल्य और अर्थ हैं जो बड़ी शक्तियों की योजनाओं के मार्ग की रुकावट बन रहे हैं और इस्लाम की छवि को ख़राब करने की आड़ में कौन से स्वार्थ साधे जा रहे हैं? तो मेरी पहली इच्छा यह है कि व्यापक पैमाने पर इस्लाम की छवि ख़राब करने की कोशिश के कारणों के बारे में सवाल और खोज कीजिए।

दूसरी इच्छा यह है कि विषैले प्रोपगंडे नकारात्मक पूर्वाग्रह के तूफ़ान के मुक़ाबले में आप इस धर्म को प्रत्यक्ष रूप से समझने की कोशिश कीजिए। सदबुद्धि की मांग यह है कि कम से कम आप को इतना तो मालूम हो कि जिस चीज़ से आपको दूर और भयभीत किया जा रहा है, वह क्या है उसकी असलियत क्या है?

मैं यह आग्रह नहीं करता कि आप इस्लाम के बारे में मेरा विचार या किसी और की राय को स्वीकार कीजिए, बल्कि मैं यह कहना चाहता हूं कि यह अवसर न दीजिए कि आज की दुनिया की यह प्रगतिशील और प्रभावी वास्तविकता, दूषित लक्ष्यों और स्वार्थों की छाया में आपके सामने पेश की जाए। इस बात का अवसर न दीजिए कि बिके हुए आतंकवादियों को दिखावा करके इस्लाम के प्रतिनिधियों की हैसियत से पहचनवाया जाए।इस्लाम को उसके असली स्रोतों के माध्यम से पहचानिए। क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन के माध्यम से पहचानिए।

मैं यहां यह पूछना चाहता हूं कि क्या अब तक कभी आपने मुसलमानों के क़ुरआन को पढ़ा है? क्या पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) की शिक्षाओं और उनके मानवीय व नैतिक निर्देशो का अध्ययन किया है? क्या कभी संचार माध्यमों के अलावा दूसरे माध्यमों से भी इस्लाम का संदेश प्राप्त किया है?

क्या कभी अपने आप से यह सवाल किया है कि यही इस्लाम आख़िर किस तरह और किन मूल्यों के आधार पर शताब्दियों से दुनिया की सबसे बड़ी वैचारिक सभ्यता का पोषण कर रहा है और उसने उच्च स्तर के विचारकों और ज्ञानियों का प्रशिक्षण किया है?

मैं आपसे यह चाहता हूं कि यह अवसर न दीजिए कि अपमानजनक और घटिया तसवीर पेश करके लोग सच्चाई और आपके बीच भावनाओं की दीवार खड़ी कर दें और आपको पूर्वाग्रह से आज़ाद फ़ैसले की संभावना से वंचित कर दें। आज संचार साधनों ने भौगोलिक सीमाओं को तोड़ दिया है तो आप स्वयं को वैचारिक स्तर पर बना दिए जाने वाले फ़र्जी दायरे में क़ैद न होने दीजिए।

हालांकि कोई भी अकेले उस खाई को पाट नहीं सकता जो पैदा कर दी गई है, मगर आप में से हर कोई, स्वयं को और अपने आसपास के लोगों को सत्य से परिचित कराने के उद्देश्य से इस खाई पर विचारों और न्यायप्रेम का एक पुल ज़रूर बना सकता है। इस्लाम और आप युवाओं के बीच यह चुनौती जो पूर्वनियोजित है, निश्चित रूप से तकलीफ़ देने वाली है किंतु आपके खोजी और जिज्ञासु मन में नए सवाल पैदा कर सकती है।

इन सवालों के जवाबों की खोज, आपके सामने नए तथ्यों के प्रकाश में आने का अवसर उपलब्ध करा सकती है। अतः इस्लाम से पूर्वाग्रह रहित परिचय और सही समझ के इस अवसर को हाथ से जाने न दीजिए ताकि शायद सच्चाई के बारे में आपकी ज़िम्मेदाराना शैली की बरकत से, आने वाली पीढ़ियां इस्लाम के बारे में पश्चिम के बर्ताव के इतिहास के इस कालखंड को शांत मन के साथ लिखित रूप दे सकें।

 

सैयद अली ख़ामेनई

हिजरी शम्सी बराबर 21 जनवरी2015))

1/11/1393